अपराधों की जांच की निष्पक्षता और वैज्ञानिकता बनाए रखना आईपीएस अधिकारियों का मूल कर्तव्य है....ऐसी जांचों में किसी भी राजनीतिक व्यवसायी का हस्तक्षेप विनम्रतापूर्वक अस्वीकृत कर देना चाहिए...
कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त शायद इसी अस्वीकार्य को स्वीकृत कर लेने के कारण संकट में हैं...
... मैं एक घटना बताता हूँ ! बेतिया में DIG था उस वक़्त ..
एक माननीय का फोन आया - " मैं फलाना बोल रहा हूँ..कैसे हैं पांडेय जी."
मैंने कहा - " जी बिल्कुल कुशल है.. आप कैसे हैं " उन्होंने कहा - " सब ठीक है..मोतिहारी में एक इंस्पेक्टर निलम्बित है ..वह अपना आदमी है .. निर्दोष है लेकिन फँस गया है भ्रष्टाचार के मामले में..उसको रिलीज़ कर देते .."
मैंने अति विनम्रता के साथ उत्तर दिया - " आप कृपया एक ऐफिडेविट कर के मुझे भेज दें कि वह इंस्पेक्टर आपका आदमी है और निर्दोष है तो मैँ उसकी समीक्षा कर लूँगा फिर जो उचित होगा वह मैं अवश्य कर दूँगा .."
.... वे कुछ असहज होकर बोले - " अजीब बात करते हैं आप DIG साहब ..मैं ऐफिडेविट में कैसे लिख दूँ कि कि मेरा आदमी है .."
...मैंने फिर अति अति अति विनम्र होते हुए कहा - " अभी आपने ही तो कहा कि वो आपका आदमी है और निर्दोष है तो इसे लिखकर देने में क्या हर्ज है .."
... वे कुछ नाराज़ से होकर बोले -" फलाने से भी मेरी बात होती है उन्होंने तो ऐसा कभी नहीं कहा ..अब तो आपसे मैं कभी बात नहीं करूँगा .."
.... मैंने पुनः आभारभावपूरित विनम्रता से कहा - " ये तो बड़ा अच्छा ही होगा कि आप मुझसे फिर कभी बात नहीं करेंगे .. धन्यवाद !"
..... इसके बाद उस दूरभाषीय वार्तालाप का विच्छेद हो गया ..
... बस, इससे ज़्यादा कुछ नही होता अगर कोई पुलिस अधिकारी जांच में राजनीतिक व्यवसायियों का हस्तक्षेप अस्वीकृत कर दे ! अधिक से अधिक एक पद से दूसरे पद पर विराजमान होने का अवसर मिल सकता है ..
....और यदि अस्वीकार्य को स्वीकृत कर ले कोई तो संभव है अनुकूल ग्रहदशा के कारण संकट में न फॅसे किन्तु संकट में फंसने के भय से वह सदा पीड़ित रहेगा और भयग्रस्त जीवन का दूसरा नाम नरक और गुलामी है ...
🇮🇳 अरविंद पांडेय 🇮🇳
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अरविन्द पाण्डेय आईपीएस, डीजी सिविल डिफ़ेंस बिहार के पद पर सम्प्रति कार्यरत हैं .