रविवार, 19 सितंबर 2021

झूठे मुकदमें से कैसे बचें ?

झूठे मुकदमें से कैसे बचें ?
अनेक लोगों ने मुझसे ये पूछा है कि जब कोई किसी के ऊपर झूठा मुकदमा करा दे तो उससे कैसे बचा जाय ?
इस सम्बन्ध में यह सभी जानते हैं कि पुलिस, ९९%  मामलों में स्वयं  मुकदमा दर्ज नहीं करती..थाना में मुकदमा दर्ज होने के लिए एक शिकायतकर्ता आवश्यक  होता है जो थाना में लिखकर देता है कि अमुक अमुक व्यक्ति ने ये अपराध किया है..
अब जिन व्यक्तियों के विरुद्ध अपराध का आरोप होता है वे अभियुक्त बन जाते हैं.किन्तु आप यह जान लें कि पुलिस अनुसंधान की प्रक्रिया में पहले मुकदमा दर्ज होता है फिर उसका पर्यवेक्षण पुलिस उपाधीक्षक द्वारा किया जाता है .. 
जब पर्यवेक्षण में उपाधीक्षक, अभियुक्तों के विरुद्ध साक्ष्य होने की पुष्टि करते हैं तब वे अपनी पर्यवेक्षण टिप्पणी जिले के पुलिस अधीक्षक के समक्ष भेजते हैं...
अब जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा उपाधीक्षक की पर्यवेक्षण टिप्पणी की समीक्षा की जाती है और यदि वे सहमत होते हैं तब अभियुक्तों के विरुद्ध गिरफ्तारी का आदेश देते हैं..
अर्थात किसी मुकदमें में गिरफ्तारी के लिए उपाधीक्षक और पुलिस अधीक्षक की सहमति भी आवश्यक होती है, केवल थानाध्यक्ष या अन्वेषक ही निर्अणय लेने के लिए अधिकृत नहीं होते...
इसलिए जब भी किसी व्यक्ति को लगे कि उसके विरुद्ध झूठा मुकदमा किया गया  है तब उसे तुरंत अपनी निर्दोषिता साबित करते हुए एक आवेदन मुकदमें के 
१. अनुसंधानकर्ता, 
२.थानाध्यक्ष,  
३. उस क्षेत्र के पुलिस उपाधीक्षक और 
४. जिला पुलिस अधीक्षक को तुरंत देना चाहिए..
आजकल सभी के  पास whatsapp और ईमेल की भी सुविधा है...आप इन माध्यमों से प्रतिदिन कई बार अपना आवेदन भेज सकते हैं... यदि चाहें तो सभी वरीय पुलिस अधिकारियों को यह आवेदन दे सकते हैं.. यह भी ध्यान रहे कि ऐसे मामलों में दूसरों से पैरवी नहीं कराएं अन्यथा अधिकारियों को आपकी निर्दोषिता पर संदेह हो सकता है...
यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि कोई भी व्यक्ति बिना कारण झूठा मुकदमा भी किसी के विरुद्ध  नहीं करता..कोई न कोई कारण अवश्य होता ....इसलिए, झूठे मुकदमें से पीड़ित व्यक्ति को उस कारण का पताकर उसका भी समाधान करना चाहिए...
शुभकामनाओं सहित,
अरविन्द पाण्डेय डीजी सिविल डिफ़ेन्स, बिहार.

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अरविन्द पाण्डेय .

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