परिचय

पुलिस महानिदेशक सह नागरिक सुरक्षा आयुक्त
बिहार सरकार
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अरविंद पांडेय महाशक्तिपीठ विंध्याचल, ज़िला मिर्ज़ापुरउत्तरप्रदेश के स्थायी निवासी हैं और विंध्याचल के तीर्थपुरोहित परिवार के हैं. ये बिहार कैडर के 1988 बैच के भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी हैं जो कठोरता के साथ अपराध नियंत्रण, जनसहयोग पर आधारित रचनात्मक पुलिसिंग ( Creative Policing ) मुकदमा-मुक्त समाज के निर्माण हेतु मुकदमा विरोधी आंदोलन, भ्रष्टाचार के अनेक बड़े मामलों में सिद्धांतनिष्ठ पक्षधरता के साथ निष्पक्ष कठोर कानूनी कार्रवाई के लिए जाने जाते हैं. 2003 में इनके द्वारा बिहार और बिहारियों का राज्य के बाहर हो रहे अपमान और अपयश की समाप्ति के लिए एक वैचारिक आंदोलन का प्रारंभ किया गया और इनकी प्रेरणा से ही इसी लक्ष्य से बिहार भक्ति आंदोलन नामक संस्था का कुछ युवकों द्वारा गठन किया गया. सितंबर 2002 में बिहार के औरंगाबाद ज़िले के धावा पुल पर रेल की पटरियों में तोड़फोड़ करके कोलकाता राजधानी एक्सप्रेस को गिरा देने और 108 यात्रियों  का नरसंहार कर  उन्हें लूटने के गंभीर कांड के उद्भेदन के लिए भी इन्हें जाना जाता है. ये अपनी कविता,गीत, लेखन, गायन, अभिनय, प्रेरक भाषण और सोशल मीडिया को प्रभावित करने के कारण भी जाने जाते हैं. इस समय ये बिहार सरकार में पुलिस महानिदेशक सह नागरिक सुरक्षा आयुक्त हैं.

इनका जन्म 15 जून 1963 को उत्तर प्रदेश के विंध्याचल नामक प्रसिद्ध महाशक्तिपीठ में एक तीर्थ पुरोहित परिवार में हुआ था. इनके पिता श्री पंडित लालचन्द पाण्डेय विंध्याचल के प्रसिद्ध समाज सुधारक थे. इनके पितामह श्री पंडित ज्वालाप्रसाद पाण्डेय महात्मा गाँधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन से भी जुड़े हुए थे . वे अंग्रेज़ी शासनकाल में म्युनिसिपल कमिश्नर थे और मिर्ज़ापुर के प्रसिद्ध समाजसेवक थे. तीर्थक्षेत्र विंध्याचल, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मिर्जापुर जिले में स्थित है जहां संपूर्ण भारत से लाखों तीर्थयात्री प्रतिवर्ष मां विंध्यवासिनी का दर्शन करने के लिए आते हैं.

शिक्षा

संस्कृत ( दर्शन वर्ग ) में प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तरइलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश. 

संस्कृत, अंग्रेजी साहित्य और दर्शन में प्रथम श्रेणी में स्नातक, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश. 

उच्चतर माध्यमिक कक्षा 12 प्रथम श्रेणी में इलाहाबाद उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश. 

माध्यमिक  कक्षा 10 प्रथम श्रेणी में श्रीविन्ध्यविद्यापीठ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, विंध्याचल, मिर्ज़ापुर. 

प्राथमिक शिक्षा श्रीमहेशभट्टाचार्य प्राथमिक विद्यालय, विंध्याचल, मिर्ज़ापुर. 

प्रारम्भिक शिक्षा : श्री विंध्यवासिनी संस्कृत पाठशाला, विध्याचल, मिर्ज़ापुर

निजी जीवन परिचय

अरविन्द पाण्डेय का जन्म 15 जून 1963 को भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के मिर्ज़ापुर जिले के प्रसिद्ध शक्तिपीठ विंध्याचल में हुआ था. बाल्यकाल से ही इन्हें श्रीकृष्ण और मां विंध्यवासिनी की भक्ति प्राप्त थी. बाल्यावस्था से ही ये खेल में भी भगवान श्रीकृष्ण और माँ विंध्यवासिनी की पूजा का ही खेल खेला करते थे. श्री कृष्ण की और मां विंध्यवासिनी की मूर्तियों का श्रृंगार और पूजा करने के खेल में इनकी बहुत रूचि थी. बाल्यावस्था से ही इन्हें स्वयं आत्मनिर्भर बनने की भी रूचि थी और कक्षा 5 में पढ़ते समय ही ये श्री महेश भट्टाचार्य प्राथमिक विद्यालय, विन्ध्याचल में अपने सहपाठी दीनबंधु मिश्र के साथ अपनी  कक्षा के विद्यार्थियों को चूरन की पुड़िया बनाकर बेचा करते थे . इसी तरह हाई स्कूल, इंटरमीडिएट एवं स्नातक का पाठ्यक्रम पूरा करते समय ये नवरात्र में विंध्याचल में होने वाले महापर्व के आयोजन के अवसर पर 15 दिनों तक और अन्य दिनों में भी पूजन सामग्री से संबंधित दुकान अपने मित्र उमेश चंद्र द्विवेदी ( सम्प्रति स्वर्गीय ) के साथ चलाया करते थे. उससे होने वाली आय का प्रयोग ये नई नई पुस्तकें खरीदने में किया करते थे. हाई स्कूल, इंटरमीडिएट और स्नातकोत्तर का पाठ्यक्रम पूरा करने तक इन्होंने अपने द्वारा अर्जित धनराशि से ही हिंदी के प्रसिद्ध कवियों श्री जयशंकर प्रसाद, श्री मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, श्रीमती महादेवी वर्मा, श्री सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जैसे अनेक कवियों के साहित्य का संग्रह कर लिया था. इसी तरह महर्षि अरविंद, स्वामी विवेकानंद, लोकमान्य तिलक एवं अन्य प्रसिद्ध संतों और महापुरुषों द्वारा लिखित संपूर्ण साहित्य भी इन्होंने संगृहीत कर लिया था. संस्कृत साहित्य और दर्शन के सभी मूलग्रंथ और उसके भाष्य भी इन्होंने संग्रह किए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन करते समय इन्होंने कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स और लेनिन की सोवियत संघ में हिंदी में प्रकाशित और उस समय बहुत ही सस्ते मूल्य पर बिकने वाली सारी पुस्तकों का संग्रह किया था. इसी अवधि में मार्क्स का अध्ययन करने के बाद इन्होंने मार्क्स के दर्शन को सांख्य दर्शन की ही अनुकृति के रूप में देखा . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत ( दर्शन वर्ग ) में प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद इन्होने विश्व विद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित कनिष्ठ अनुसंधान अध्येतावृत्ति की प्रतियोगिता परिक्षा प्रथम प्रयास में ही उत्तीर्ण की और " द्वंद्वात्मक भौतिकवाद और सांख्य " पर इन्होंने शोध कार्य प्रारंभ किया था. इस शोध कार्य  में इनके मार्ग-दर्शक थे - इलाहाबाद विश्व विद्यालय के संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव . हाई  स्कूल में पढ़ते समय ही विंध्याचल में इनके ही पूर्वज पंडित विश्वनाथ प्रसाद मिश्र द्वारा स्थापित "श्री विन्ध्येश्वरी पुस्तकालय" के पुस्तकालयाध्यक्ष के रूप में कार्य किया और बंद हो चुके उस पुस्तकालय को पुनर्जीवित किया. जिसके बाद उस पुस्तकालय में सैकड़ों नई पुस्तकें खरीद कर रखी गईं तथा विंध्याचल में पुस्तकालय का सदस्य बनने एवं पुस्तक पढ़ने को एक आंदोलन का रूप देते हुए सैकड़ों की संख्या में नए सदस्यों को निबंधित किया गया. इससे पुस्तकालय की आय बढ़ गई और उनमें नई नई पुस्तकें खरीदे जाने का कार्य चलता रहा. स्नातक प्रथम वर्ष में संस्कृत,दर्शन और अंग्रेज़ी साहित्य का अध्ययन करते समय ही इन्होंने अपने मित्र श्री उमेश चन्द्र द्विवेदी के साथ दुकान करते हुए उसी दुकान पर ही काम करते समय William Wordsworth , P.B.Shelley, John Keats आदि अंग्रेज़ी कवियों की प्रसिद्ध कविताओं का हिंदी काव्यानुवाद भी किया था जो बाद में इनकी अन्य कविताओं और लेखों के संग्रह "स्वप्न और यथार्थ" में वर्ष  २००९ प्रकाशित हुआ.

प्रथम प्रयास में ही भारतीय पुलिस सेवा में चयन

इन्होंने वर्ष 1987 में संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा प्रथम प्रयास में ही उत्तीर्ण  की और प्रथम प्रयास में इनकी प्रथम वरीयता की सेवा -  भारतीय पुलिस सेवा ( Indian Police Service ) के लिए इनका चयन हो गया. सिविल सेवा परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा में इनका वैकल्पिक विषय था दर्शन. मुख्य परीक्षा में इनके वैकल्पिक विषय थे संस्कृत और  दर्शन. भारतीय पुलिस सेवा में चयन के बाद इन्हें बिहार संवर्ग आवंटित हुआ और हैदराबाद में अवस्थित सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी से प्रशिक्षण के बाद इन्होंने क्षेत्रीय प्रशिक्षण हेतु. अविभाजित बिहार के राँची ज़िला मुख्यालय में वर्ष १९८९ में योगदान किया.

पुलिस अधिकारी के रूप में जीवन-यात्रा

गंभीर-अपराधों से प्रभावित राँची ज़िला में सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में प्रथम पदस्थापन

अविभाजित बिहार के राँची ज़िला में क्षेत्रीय प्रशिक्षण पूर्ण होने पर वर्ष 1990 में बिहार सरकार द्वारा इनका प्रथम पदस्थापन भी रांची ज़िला के सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में किया गया. इस कार्यकाल में इन्होने साम्प्रदायिक दृष्टि से अतिसंवेदनशील रांची नगर में अपराधियों और कालाबाजारियों के विरुद्ध सशक्त पुलिस अभियान चलाया. जन-संपर्क के नए तरीकों का प्रयोग किया. जनता के साथ पुलिस के संबंधो को सशक्त बनाने और जन-सहयोग बढाने के लिए  इन्होने अनेक पर्णिकाए प्रकाशित कराकर आम लोगों के बीच वितरित कराया . नगर के विभिन्न क्षेत्रों में संगीत के कार्यक्रम आयोजित कराकर जन-सहयोग पर आधारित पुलिसिंग का विस्तार किया. उस अवधि में अनेक कुख्यात अपराधी या तो रांची छोड़कर भाग गए या गिरफ्तार करके जेल भेजे गए. छात्राओं के साथ छेड़खानी या महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अन्य अपराधों पर इनकी कठोर पुलिसिंग के कारण महिलाएं निर्भय होकर रांची में निकलने लगीं. इनके पदस्थापन के पहले यह कहा जाता था कि रांची में अपराधियों और रंगदारों के डर से ७ बजे शाम दुकाने बंद हो जातीं थीं और लोग परिवार के साथ घर के बाहर निकलने में डरते थे. सिनेमा हाल में नाइट शो नहीं चलता था. किन्तु इनके पदस्थापन के बाद ये सब बंद हुआ और सिनेमा हाल में भी नाइट शो चलने लगा. दुकाने भी देर रात तक खुलने लगीं. आज भी वर्ष १९९० और १९९१ में रांची को अपराधमुक्त बनाने के सफल प्रयास के लिए अरविंद पाण्डेय को याद किया जाता है.

प्रोन्नति के बाद नगर पुलिस अधीक्षक के रूप में राँची में ही पदस्थापन   

राँची में सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में इनके द्वारा किए गए अपराध नियंत्रण और सांप्रदायिक सद्भाव के परिरक्षण के कार्य को महत्व देते हुए बिहार सरकार नें वर्ष १९९२ में इन्हें रांची में ही नगर पुलिस अधीक्षक के रूप में पदस्थापित किया. एक ही पुलिस अधिकारी को सहायक पुलिस अधीक्षक के बाद प्रोन्नति देकर रांची में ही नगर पुलिस अधीक्षक बनाने का यह प्रथम और अंतिम उदाहरण है.  इन दोनों कार्यकालों में इन्होंने रांची में अपराधियों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्रवाई की तथा रांची के एक कुख्यात आपराधिक कांड गायत्री देवी हत्याकांड में इन्होंने सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार करते हुए बिहार में  पहली बार त्वरित विचारण ( Speedy Trial ) कराया. फलस्वरूप विचारण न्यायालय ने अपराधियों को ६ महीने के अंदर मृत्युदंड और आजीवन कारावास का दंड दिया. 

राँची में पुलिस कार्यों में जन सहभागिता हेतु युवा संसद का गठन  

रांची में इन्होंने सभी नगर परिषदों में युवा संसद का गठन कराया और उसी के माध्यम से रांची के युवाओं को पुलिस को सहयोग देने हेतु संगठित किया. इन्होंने आम लोगों के बीच पुलिस की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए संगीत द्वारा अपराध नियंत्रण का एक नया प्रयोग शुरू किया. इस नए प्रयोग में इन्होंने रांची के विभिन्न क्षेत्रों में संगीत के आयोजन कराए जिनमें स्वयं भी भाग लिया और संगीत कार्यक्रमों में प्रेरक वक्तव्य देते हुए गीत भी गाया और अपनी प्रेरक कविताएं भी सुनाईं. युवाओं का आह्वान किया कि वे स्वच्छ सुंदर एवं अपराध मुक्त रांची के निर्माण में अपनी ऊर्जा का प्रयोग करें. राँची के कार्यकाल में इन्होंने अनेक पर्णिकाओं को प्रकाशित कराकर पुलिस का संदेश जन-जन तक पहुँचाया. रांची जिला में इनके द्वारा  नकली दवाओं की एक विशाल फैक्ट्री  का उद्भेदन किया गया जिसमे तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री की भूमिका संदिग्ध पाए जाने का समाचार अखबारों ने प्रकाशित किया था .  यह मामला राज्य स्तर पर बिहार ही नहीं  देश में भी चर्चित हुआ था. इसी घटना के बाद वर्ष 1992 में रांची से इनका स्थानांतरण खगड़िया ज़िला के पुलिस अधीक्षक के रूप में किया गया. इस स्थानांतरण के विरोध में पूरा राँची नगर स्वतःस्फूर्त बन्द रहा और आम लोगों ने इसका विरोध करते हुए आंदोलन किया. 

1992 में बिहार के डकैती और गिरोह-अपराध से प्रभावित खगड़िया ज़िला में पुलिस अधीक्षक के रूप में पदस्थापन 

रांची के इस विशेष अनुभव के बाद इनका पदस्थापन खगड़िया ज़िला के पुलिस अधीक्षक के रूप में राज्य सरकार द्वारा किया गया. खगड़िया में इन्होंने रचनात्मक पुलिसिंग ( Creative Policing ) का फिर से प्रयोग किया. इस अभियान के अंतर्गत पुलिस गांव गाँव तक जाती थी और विवाद ग्रस्त स्थलों पर विवाद करने वाले दोनों पक्षों के साथ अन्य प्रतिष्ठित नागरिकों की सभा बुलाकर परामर्श के माध्यम से उनके बीच समझौते कराकर दोनों पक्षों के बीच शांतिपूर्ण सह अस्तित्व स्थापित करने के लिए सफल प्रयास करती थी. खगड़िया ज़िला के स्वास्थ्य-केंद्रों में फ़र्ज़ी नियुक्तियों का उद्भेदन - खगड़िया जिला के पुलिस अधीक्षक के रूप में ही इन्होंने बिहार राज्य में पहली बार जिले में स्वास्थ्य केंद्रों की कुष्ठ नियंत्रण इकाइयों में फर्जी नियुक्ति पत्र के आधार पर की जाने वाली नियुक्तियों का उद्भेदन किया था और उसमें प्राथमिकी पंजीकृत कराकर कठोर विधिक कार्रवाई भी की थी . इस मामले में आगे चलकर अनेक वरिष्ठ अधिकारियों को न्यायालय द्वारा दंडित किया गया था. 

खगड़िया ज़िला में अनुसूचित जाति की विकास योजनाओं में भ्रष्टाचार का उद्भेदन - 

खगड़िया जिला में अनुसूचित जाति के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं में किए जाने वाले भ्रष्टाचार का उद्भेदन भी इनके द्वारा किया गया जिसे वहां के लोगों ने व्यापक समर्थन दिया. खगड़िया ज़िला से इनके स्थानांतरण के बाद संपूर्ण खगड़िया जिले में आम लोगों ने आंदोलन किया और सारे ज़िले में स्वतःस्फूर्त बंद किया गया. आम लोगों ने सरकार द्वारा इनके स्थानांतरण के निर्णय का विरोध किया जिसे शांत करने के लिए ये स्वयं आंदोलनकारियों के बीच गए और उन्हें शांत कराते हुए वहां की स्थिति को स्थानांतरित होने के बावजूद नियंत्रित किया.  

अविभाजित बिहार के उग्रवाद-प्रभावित चतरा ज़िला के पुलिस अधीक्षक के रूप में पदस्थापन - 

खगड़िया जिला से स्थानांतरण के बाद इन्हें अविभाजित बिहार के चतरा जिले में पुलिस अधीक्षक के रूप में पदस्थापित किया गया . उस समय चतरा जिला माओवादी उग्रवाद से गंभीर रूप से प्रभावित था तथा इनके पदस्थापन के पूर्व माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (MCC) के उग्रवादियों द्वारा अनेक पुलिस जवानों और अधिकारियों का अपहरण और हत्याएं की गई थीं तथा बी. एस. एफ. (Border Security Force) के वाहन को भी बारूदी सुरंग के माध्यम से विस्फोट कर उड़ा दिया गया था. चतरा जिला में इन्होंने सुदूरवर्ती पर्वतीय प्रदेश और जंगल में अवस्थित गांवों में जा जाकर जिला मजिस्ट्रेट के साथ आम लोगों के बीच सभाएं की और उन्हें उग्रवादियों द्वारा जनता को पहुंचाई जाने वाली हानियों से अवगत कराया . आम जनता के बीच उग्रवादियों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों से संबंधित पर्णिकाएँ ( Pamphlets ) और पोस्टर वितरित कराए गए तथा जनता को प्रशिक्षित किया गया. परिणाम स्वरूप चतरा जिला में इनके पदस्थापन-काल में उग्रवादी, किसी भी पुलिसकर्मी की हत्या करने में सफल नहीं हो सके. चतरा जिला में अपराधियों और उग्रवादियों के विरुद्ध इनके द्वारा चलाया गया अभियान पूर्णतः सफल रहा . गरीबी से त्रस्त चतरा जिला के तपसा और उरुब जैसे जंगल के बीच बसे हुए गांवों में  इनके कार्यकाल में  पुलिस द्वारा 2 महीने तक मुफ्त खिचड़ी केंद्र संचालित किया गया जिसमें उस क्षेत्र के गरीब जनजातीय लोगों को पंक्तिबद्ध रूप में बिठाकर सम्मान के साथ पुलिसकर्मी, वर्दी में खिचड़ी खिलाते थे जिसका परिणाम यह हुआ कि पूरे चतरा क्षेत्र के जनजातीय क्षेत्रों में गरीबों के बीच पुलिस की छवि एक समाजसेवक के रूप में उभरी और आम जनता ने ही माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर के उग्रवादियों को भगाना शुरू कर दिया. ये गाँव ऐसे थे जहां गर्मी के दिनों में जनजातीय नागरिकों को कभी कभी जंगल में उगने वाले साग और पत्ते खाकर रहना पड़ता था.   वर्ष १९९४ में  राँची ज़िला के नगर पुलिस अधीक्षक के रूप में पुनः पदस्थापन -  

इस बीच रांची जिला में अपराधों में भयानक वृद्धि को देखते हुए बिहार सरकार ने इन्हें फिर से रांची जिला के नगर पुलिस अधीक्षक के रूप में पदस्थापित किया और वहाँ 1 वर्ष के अभ्यंतर कार्य करते हुए इन्होंने रांची को फिर से अपराध मुक्त करने की दिशा में सफल प्रयास किया. 

उग्रवाद प्रभावित पलामू ज़िला ( Daltonganj ) के पुलिस अधीक्षक के रूप में पदस्थापन

रांची जिला के बाद इन्हें अविभाजित बिहार के माओवादी उग्रवाद से प्रभावित पलामू जिला के पुलिस अधीक्षक के रूप में पदस्थापित किया गया . पलामू जिला इस समय झारखण्ड राज्य में है. पलामू भी उस समय माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (MCC) और पार्टी यूनिटी के उग्रवादियों के आतंक का सबसे खतरनाक क्षेत्र माना जाता था. पलामू जिला में पदस्थापन की अवधि में इन्होंने गांव गांव में जाकर जन संपर्क स्थापित किया और अपराधियों और उग्रवादियों के विरुद्ध एक सशक्त और सुनियोजित अभियान चलाया. पलामू जिला में उस समय उग्रवादी हमले के भय से वरीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के सरकारी वाहनों में vip लाइट नहीं लगाई जाती थी.पूरा पुलिस बल हतोत्साहित था. उस स्थिति को इनके अथक प्रयास से बदला गया.

उग्रवाद-प्रभावित पलामू की पंचायतों में जन अधिकार संरक्षण समितियों का गठन इनके द्वारा पलामू ज़िला की सभी पंचायतों में जन अधिकार संरक्षण समितियों का गठन कराया गया और उसके माध्यम से आम जनता और थाना प्रभारी के आपसी समन्वय से छोटे-मोटे मामलों का निष्पादन कराना प्रारंभ किया. जन अधिकार संरक्षण समिति के गठन से पहले ऐसे मामलों में आम लोग उग्रवादियों के पास जाते थे और उग्रवादियों द्वारा जन अदालत लगाकर अनेक क्रूरतापूर्ण अपराध किए जाते थे और लोगों को प्रताड़ित किया जाता था .जन अधिकार संरक्षण समिति के गठन और उसके कार्य प्रारंभ करने के बाद उग्रवादियों का प्रभाव आम जनता पर समाप्त होने लगा और पुलिस के द्वारा चलाए गए उग्रवाद और अपराध-विरोधी अभियान के द्वारा पलामू जिला में माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर और पार्टी यूनिटी के संगठन को कमजोर और अप्रभावी कर दिया गया. पलामू जिला के बाद इन्होंने सिविल सेवा के लंबित आधारभूत पाठ्यक्रम का प्रशिक्षण रेलवे स्टाफ कॉलेज, बड़ोदरा, गुजरात में प्राप्त किया और उसके बाद कुछ समय तक पटना में अपराध अन्वेषण विभाग में पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्य किया. 

अविभाजित बिहार के साहिबगंज ज़िला के पुलिस अधीक्षक के रूप में पदस्थापन

1996 में ये अविभाजित बिहार के साहिबगंज जिला में पुलिस अधीक्षक के रूप में बिहार सरकार द्वारा पदस्थापित किए गए. साहिबगंज ज़िले की सभी पंचायतों में स्वराज्य समितियों का गठन - साहिबगंज जिला में भी इन्होंने जिले की सभी पंचायतों में स्वराज्य समितियों का गठन किया. इन समितियों में सभी वर्गों के नागरिक सम्मिलित किए जाते थे जिनकी संख्या 20 होती थी. स्वराज्य समिति का पदेन सचिव संबंधित थाना के थानाध्यक्ष होते थे. स्वराज्य समिति के माध्यम से भी इनके द्वारा छोटे-मोटे समझौता किए जाने योग्य मुकदमों का निस्तारण जनता के ही माध्यम से पुलिस के समक्ष कराया जाता था जिससे पुलिस की व्यापक प्रसिद्धि हुई और उसे लोक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई. साहिबगंज ज़िला के क्रशर केंद्रों में श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी दिलाने हेतु नया प्रयोग

साहिबगंज जिले में सैकड़ों क्रशर मशीनें चल रहीं थीं जिनमें काम करने वाले श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी से बहुत कम मजदूरी दी जाती थी.महिला श्रमिकों को पुरुषों से कम मजदूरी दी जाती थी. इनके द्वारा सभी क्रशर केंद्रों में मजदूरों की समितियां गठित की गई और उन्हें थानाध्यक्ष के माध्यम से न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के बारे में प्रशिक्षित किया गया. क्रशर केंद्रों में जाकर थानाध्यक्ष द्वारा मजदूरों के बीच "8 घंटे काम 40 रुपए दाम" का नारा लगवाया जाता था. इस तरह श्रमिकों के बीच न्यूनतम मजदूरी प्राप्त करने के लिए जन जागरूकता पैदा की गई . इसी तरह क्रशर केंद्रों में खनन नियमावली के अनुसार सारी सुविधाएं दिए जाने हेतु भी इनके द्वारा कार्रवाई कराई गई. 

साहिबगंज ज़िला में मस्टर रोल घोटाला के अपराधों का पंजीकरण और स्थानांतरण - इसी क्रम में साहिबगंज में जिले से बाहर जाकर पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों में काम करने वाले मजदूरों का फर्जी  मस्टररोल बनाकर मजदूरी की राशि गबन करने का एक बड़ा भ्रष्टाचार का मामला सामने आया. उस मामले में इनके द्वारा साहिबगंज और पाकुड़ के राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी कार्यक्रम  ( National Rural Employment  Guarantee Program )  के कार्यपालक अभियन्त बेचन राम की की लिखित शिकायत पर साहिबगंज एवं पाकुड़ जिलों में आपराधिक काण्ड दर्ज कराए गए जिसके बाद स्थानीय अधिकारियों द्वारा इनके विरोध में आंदोलन किया गया और जुलूस भी निकाले गए. किंतु आम जनता इस मुकदमे से प्रसन्न थी और जनता का यह विश्वास था कि पहली बार गरीबों के लिए सरकार द्वारा संचालित विकास योजनाओं में भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों और ठेकेदारों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई पुलिस द्वारा की गई है. उस समय गरीबों के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम ( National Rural Employment Guarantee Program ) नाम से एक योजना चलाई जा रही थी. इस योजना में अनुपस्थित श्रमिकों को भी कार्य के लिए उपस्थित दिखाकर फ़र्ज़ी मस्टर रोल बनाया जाता था और अधिकारियों और ठेकेदारों द्वारा करोड़ों रुपए की सरकारी राशि गबन कर ली जाती थी. जब इस घोटाला के संबंध में इन्हें तत्कालीन कार्यपालक अभियंता बेचन राम ने सूचना दी तब इन्होंने इस विषय में साहिबगंज के उपायुक्त को सूचित किया. उपायुक्त द्वारा प्राथमिकी पंजीकृत नहीं कराने पर इन्होंने प्राथमिकी पंजीकरण का आदेश सभी थानाध्यक्षों को दिया. बाद में यह काण्ड, मस्टररोल घोटाला कांड के नाम से जाना गया. मस्टर रोल घोटाला काण्ड के पंजीकरण के तुरंत बाद इनका साहिबगंज पुलिस अधीक्षक के पद से स्थानांतरण

मुकदमा दर्ज कराने के दूसरे दिन ही दिन इन्हें साहिबगंज जिला से  स्थानांतरित करते हुए पुलिस मुख्यालय, पटना में योगदान का आदेश दिया गया और लगभग दो महीने तक पदस्थापन की प्रतीक्षा में रखा गया.

स्थानांतरण के विरोध में साहिबगंज ज़िले में जन-आंदोलन

साहिबगंज जिला से इनकेस्थानांतरण से चिंतित और आक्रोशित साहिबगंज के लोगों द्वारा इनके पक्ष में स्वतःस्फूर्त साहिबगंज बंद किया गया . साहिबगंज जिला मुख्यालय की सारी दुकानें बंद हो गयीं थीं और वहां व्यापक जन-आंदोलन हुआ.

मस्टर रोल घोटाला काण्ड का अनुसंधान केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा कराए जाने हेतु पटना उच्च न्यायालय में जनहित याचिका  कुछ समाजसेवियों द्वारा पटना उच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका दाखिल की गई जिसमें भ्रष्टाचारियों को बचाने के आशय से इनके स्थानांतरण किए जाने की दलील दी गई और न्यायालय से यह प्रार्थना की गई कि मस्टररोल घोटाला कांड का अनुसंधान केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो  ( CBI ) को दे दिया जाए . इस जनहित याचिका की पैरवी उस समय पटना उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में कार्य कर रहे रविशंकर प्रसाद ने की थी जो इस समय भारत सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं . इसी मस्टररोल घोटाला कांड की सुनवाई करते समय अगस्त 1997 में पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार के विरुद्ध यह टिप्पणी की थी कि बिहार सरकार के अधिकारी मस्टररोल घोटाला करने वाले लोगों से मिले हुए हैं और उन्होंने न्यायालय में गलत तथ्य प्रस्तुत किया है. न्यायालय की उस समय की एक प्रसिद्ध टिप्पणी समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित की गई थी जिसमें न्यायालय ने  उस जनहित याचिका की सुनवाई करते समय यह कहा था कि " Highcourt is also empowered to recommend President rule in the state." न्यायालय की इस टिप्पणी के बाद भारत की संसद के दोनों सदनों में विरोधी दलों ने इसे मुद्दा बनाया था और पहली बार बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग उस समय के विरोधी दलों द्वारा की गई थी . उस समय के विरोधी दल में बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी थे जिन्होंने संसद में न्यायालय की टिप्पणी के आलोक में बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग की थी. अधिवक्ता रविशंकर प्रसाद की दलील सुनने के बाद पटना उच्च न्यायालय ने मस्टरोल घोटाला कांड का अनुसंधान करने हेतु केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को आदेश दिया था. 

पुलिस मुख्यालय, पटना में अपराध अन्वेषण विभाग में पुलिस अधीक्षक खाद्य के रूप में पदस्थापन 

पदस्थापन  की प्रतीक्षा के बाद इन्हें पटना पुलिस मुख्यालय में अपराध अन्वेषण विभाग में पुलिस अधीक्षक, खाद्य के रूप में पदस्थापित किया गया. पुलिस अधीक्षक खाद्य के रूप में इनके द्वारा बिहार  वाणिज्य कर विभाग के  फॉर्म F और फॉर्म C की चोरी करते हुए वाणिज्य कर की अपवंचना करने वाले अनेक व्यापारियों और उनके षड्यंत्र में सम्मिलित वाणिज्य कर अधिकारियों के विरुद्ध दर्ज मुकदमे में सभी साक्ष्य संकलित करते हुए कानूनी कार्रवाई निष्पादित की गई और अभियुक्तों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया. इस कानूनी कार्रवाई के कारण फॉर्म F और फॉर्म C की झूठी चोरी को आधार बनाकर वाणिज्य कर की चोरी के मामले बंद हुए और मुकदमे के अनेक अभियुक्तों द्वारा गिरफ्तारी के बाद न्यायालय से जमानत प्राप्त करने के लिए चोरी किए गए वाणिज्यकर के करोड़ों रुपए सरकार के खाते में जमा किया गया . बिहार सरकार द्वारा गरीबों के लिए सस्ती साड़ी-घोटी वितरण में अधिकारियों द्वारा किये गए घोटाला और हुडको इंदिरा आवास घोटाला की जांच - इसी अवधि में इनके द्वारा बिहार राज्य के कुख्यात साड़ी धोती घोटाला कांड और हुडको इंदिरा आवास घोटाला कांड में जाँच और कानूनी कार्रवाई की गई . हुडको इंदिरा आवास घोटाला कांड में बिहार सरकार के तत्कालीन भवन निर्माण राज्यमंत्री और अन्य सम्बद्ध अधिकारियों के विरुद्ध भी कानूनी कार्रवाई की गई थी.

बिहार सैन्य पुलिस-10 के समादेष्टा के रूप में पटना में पदस्थापन : समादेष्टा के रूप में इन्होने बिहार सैन्य पुलिस के जवानों की सारी समस्याओं का समाधान किया. अंग्रेजों के समय से चली आ रही इस परम्परा को इन्होने समाप्त कर दिया कि कोई भी सिपाही या अधिकारी समादेष्टा से सप्ताह में सिर्फ २ दिन ही दिन Request Room में मिल सकता है.इन्होने सभी सिपाहियों और अधिकारियों को यह सुविधा दी कि जब उन्हें कोई परेशानी हो वे कभी भी समादेष्टा से मिल सकते हैं या फोन पर भी अपनी परेशानी बता सकते. सिपाहियों को छुट्टी के लिए अब परेशान नहीं होना पड़ता था और वे अपनी आवश्यकता पड़ने पर अपनी छुट्टी हेतु फोन पर भी निवेदन कर सकते थे.बिहार सैन्य पुलिस के जवान अधिकांशतः बिहार के उग्रवाद-प्रभावित क्षेत्रों में प्रतिनियुक्त रहते थे.उन्हें छुट्टी के लिए आवेदन देने फिर उसे स्वीकृत कराने में भयानक तनाव झेलना पड़ता था. छुट्टी का आवेदन देने के बाद भी उन्हें महीनों तक छुट्टी नहीं मिल पाती थी. इसलिए छुट्टी देने की पुरानी परम्पराओं को समाप्त करने से जवानों में विभाग और वरीय अधिकारियों के प्रति निष्ठा का भाव पैदा हुआ.

सहरसा ज़िला के पुलिस अधीक्षक के रूप में पदस्थापन 

वर्ष 2005 में इन्हें बिहार के सहरसा जिले के पुलिस अधीक्षक के रूप में पदस्थापित किया गया. सहरसा जिले में इनके द्वारा अपराधियों और अन्य अनधिकृत व्यक्तियों को गैर कानूनी रूप से शस्त्र लाइसेंस देने के आरोप में सहरसा के पूर्व जिला मजिस्ट्रेट और अन्य शस्त्र लाइसेंसधारियों के विरुद्ध नामजद मुक़दमा दर्ज कराया गया. सहरसा जिले में वर्ष 2005 में फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में इनके द्वारा पूर्णतः शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव कराया गया और पहली बिहार राज्य में मतदान केंद्र लूटने वालों के विरुद्ध वहां प्रतिनियुक्त दंडाधिकारी और पुलिस दल ने बल प्रयोग किया जिसमें दो व्यक्ति मारे भी गए थे. सहरसा जिला में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को आवंटित इंदिरा आवास के घोटाला के मामले में इनके द्वारा कठोर कार्रवाई की गई और आधा अधूरा बने हुए सैकड़ों लंबित इंदिरा आवासों के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ कराई गई जिसे व्यापक जन समर्थन प्राप्त हुआ. सहरसा जिले में भी इनके स्थानांतरण के बाद आम जनता द्वारा इनके स्थानांतरण के विरोध में सहरसा बंद का आयोजन किया गया और सरकार के निर्णय के विरुद्ध अपना आक्रोश व्यक्त किया गया. सहरसा जिले में इनके द्वारा पर्णिकाओं का वितरण कराया गया और उस के माध्यम से अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध मुखर होने के लिए व्यापक जन प्रशिक्षण किया गया था. सहरसा के बाद इनका पदस्थापन पुलिस मुख्यालय पटना में विशेष शाखा में पुलिस अधीक्षक A के रूप में किया गया. 

पुलिस उप महानिरीक्षक कोटि में प्रोन्नति और चंपारण क्षेत्र में पदस्थापन - 

वर्ष २००५ में ही  इनकी प्रोन्नति पुलिस उप महानिरीक्षक ( Director General of Police )  कोटि में की गई और बिहार राज्य के चंपारण क्षेत्र में पुलिस उपमहानिरीक्षक के रूप में इनकी पदस्थापना वर्ष 2005 में की गई. चंपारण क्षेत्र में पूर्वी चंपारण ( मोतिहारी )  पश्चिमी चंपारण ( बेतिया ) और बगहा सहित 3 जिले सम्मिलित थे. इस अवधि में इनके द्वारा आम जनता के बीच तीनों जिलों में पर्णिकाओं का वितरण कराते हुए भ्रष्टाचार और अपराध के विरुद्ध जन प्रशिक्षण किया गया जिससे जनता का मनोबल ऊंचा हुआ. चंपारण क्षेत्र के तीनों जिलों में इनके द्वारा नागरिकों के बीच वर्षों से चले आ रहे भूमि विवादों का निस्तारण आपसी समाधान के माध्यम से कराया गया . इस क्रम में दोनों पक्षों के लोग आपसी समझौते के आधार पर भूमि विवादों का समाधान करने के लिए सहमत हुए. इस प्रकार इस मुकदमा विरोधी अभियान के माध्यम से इनके द्वारा सैकड़ों संभावित अपराधों का निवारण किया गया और पड़ोसियों तथा रिश्तेदारों के बीच में वर्षों से चले आ रहे वैमनस्य को भी समाप्त कराया गया. इसी अवधि में नवंबर 2006 में विधानसभा का पुनः चुनाव हुआ. इस चुनाव के क्रम में इनके द्वारा तीनों जिलों में शांतिपूर्ण, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए सारी प्रशासनिक कार्रवाई कुशलतापूर्वक कराई गई. नवंबर 2006  में हुए विधानसभा के चुनावों के बाद बिहार में सरकार बदल गई और नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने. 


मगध क्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक के रूप में पदस्थापन

दिसंबर 2006 में ही इनका पदस्थापन चंपारण क्षेत्र से मगध क्षेत्र, गया में पुलिस उपमहानिरीक्षक के रूप में किया गया. मगध क्षेत्र के गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, नवादा और अरवल जिलों में इनके द्वारा आपसी समझौते के आधार पर मुकदमों के समाधान और भूमि विवादों की समाप्ति के लिए व्यापक अभियान चलाया गया. थानाध्यक्षों के माध्यम से भूमि विवादों की सूची तैयार कराकर सैकड़ों भूमि विवादों का समाधान कराया गया. मगध क्षेत्र के सभी जिले माओवादी उग्रवादियों के प्रभाव क्षेत्र में आते थे. इनके द्वारा रचनात्मक पुलिसिंग Creative Policing का प्रयोग करते हुए पर्णिकाओं के वितरण तथा जन-सभाओं के माध्यम से जन-प्रशिक्षण कराया गया. जनता को यह बताया गया कि उग्रवादियों के द्वारा गरीबों की विकास योजनाओं को लागू करने में बाधा पहुंचायी जा रही है. उग्रवादियों के विरुद्ध चलाए गए इस सशक्त अभियान का परिणाम यह हुआ कि जब माओवादी उग्रवादियों ने 3 मार्च 2006 को बिहार के गया ज़िला के डुमरिया थाना पर रात्रि 12 बजे से सुबह 4 बजे तक सशस्त्र हमला किया तब पुलिस द्वारा की गई आत्मरक्षा की कार्रवाई में पुलिस लगभग 25 उग्रवादी मारे गए और उग्रवादियों के उस हमले में एक भी पुलिसकर्मी हताहत नहीं हुआ. इनके पदस्थापन के पूर्व और वहां से इनके स्थानान्तरण के बाद भी  गया जिले में अनेक पुलिसकर्मियों और पुलिस अधिकारियों की हत्याएं सीपीआई माओवादियों द्वारा की गई थी.

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अरविन्द पाण्डेय .

पुलिस पर कभी भी किसी का भी दबाव काम नहीं कर सकता बशर्ते ..

अपराधों की जांच की निष्पक्षता और वैज्ञानिकता बनाए रखना आईपीएस अधिकारियों का मूल कर्तव्य है....ऐसी जांचों में किसी भी राजनीतिक व्यवसायी का हस...